मेरे आँगन की चिड़िया | मनोज तिवारी
मेरे आँगन की चिड़िया | मनोज तिवारी
मेरे आँगन में
एक छतनार पेड़ है
उस पर अनेक रंगों वाली
चिड़िया बैठी है
वह फुदकती है इधर-उधर
वह जहाँ भी जाती है
अपने सभी रंगों
को समेटे चलती है
वह एक रंग
दूसरे रंग
से नहीं मिलाती
वह चंचल सी
हठीली चिड़िया
बदलते समय में
भी रंग नहीं
बदलती
उसे कब
किस पंख को कितना
खोलना है
स्वयं निर्णय
लेती है
रंगों को बिना बिखराए
स्वाभाविक उड़ान
भर कर
शाम होते ही
अपने घोंसले
में बैठ
चिड़ा से
पेड से
आस-पास-पड़ोस से
बतियाती है।
वहीं
एक दूसरी
चिड़िया है
उसके भी
रंग-बिरंगे
पंख हैं
वह
हमेशा
सामयिक दृष्टि से
रंग बदलती रहती है
लंबी उड़ान
भरती है
सभी से वाहवाही
बटोरती है
फिर भी वह
अप्रसन्न और बेचैन
एक डाली से
दूसरी डाली पर
पंखों के रंग बिखराए
फुदकती है
मानो तलाश में
हो किसी के
और
अँधेरा पसरते ही
मेरे आँगन का
छतनार पेड़
आगोश में ले
दोनों को
रात्रि के बिस्तर
में समा जाता है
पहली किरण के लिए।