मेरा घर उम्र और दिन | रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
मेरा घर उम्र और दिन | रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

मेरा घर उम्र और दिन | रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

मेरा घर उम्र और दिन | रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

मेरे दिन जो मेरे दिन बन गए
इसमें मेरे सुनहरे दिनों की ईंटें लगी हैं
उम्र को स्लैब की तरह जमाया है
अपने इरादों के सरियों को
इसके पिलरों में डाला है

चाँदी सी दीप्त रातों को काट कर
इसका संगमरमरी फर्श बनाया
खूबसूरत मौसमों को गमलों में बदल कर
अपनी स्मृतियों के पौधों को रोपा है

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घर कंक्रीट से नहीं बनते
रखना होते हैं दीवारों दरवाजों में
छत आँगन और गमलों में
अपनी जिंदगी के सबसे अच्छे दिन

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