मंगल-भवन | पंकज चतुर्वेदी

मंगल का जो भवन था 
उसी में अमंगल पाया गया

उसी में प्रभु पाए गए 
उन्हीं वेदों पुराणों स्मृतियों की 
महिमा के संगीत में टहलते हुए 
जिनके झूठ से, छल से, क्रूरता से 
कितनी प्रजाएँ 
सताई जाने के लिए 
ज़िंदा रखी जाती रहीं

उसी में चरित्र से हीन होकर भी 
पूजा के योग्य विप्र पाए गए 
और जो श्रेष्ठ थे वे भी विप्र ही थे 
क्योंकि श्रेष्ठ हो सकने का 
औरों का अधिकार नहीं रहा कभी

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उसी में पाई गईं स्त्रियाँ पराधीन 
पुरुष के संदेह से 
आग में जलाई जाती हुईं 
उसके संदेह से बिलखती हुई जंगलों में 
उसके गर्भ के भार को ढोती हुईं 
उसकी संतानों के रक्त में बढ़ती हुईं

और इसके सदियों बाद 
यह समाचार पाया गया 
कि उनकी संतानों ने 
प्रभुता के नहीं 
मनुष्यता के मुकुट पहने हुए हैं

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कि उन्होंने मंगल के भवन में 
अमंगल को पहचाना हुआ है 
और उसके ख़िलाफ़ 
संघर्ष ठाना हुआ है