मैं हूँ | माहेश्वर तिवारी
मैं हूँ | माहेश्वर तिवारी
आसपास
जंगली हवाएँ हैं
मैं हूँ
पोर-पोर
जलती समिधाएँ हैं
मैं हूँ
आड़े-तिरछे
लगाव
बनते जाते
स्वभाव
सिर धुनती
होठ की ऋचाएँ हैं
मैं हूँ
अगले घुटने
मोड़े
झाग उगलते
घोड़े
जबड़ों में
कसती बल्गाएँ हैं
मैं हूँ