मैं ही हूँ गुनहगार
मैं ही हूँ गुनहगार

मैं ही हूँ गुनहगार
किए हैं
जो मैंने तुम पर कई अत्याचार

घृणा रही मेरे भीतर
नहीं कर सका मैं
अपने क्रोध का शमन
करता रहा
मैं भी विष-वमन

मैं ही हूँ गुनहगार
करता हूँ आज मैं
यह बात स्वीकार

लोभ ने किया मुझे परेशान
चाहता था बनना एक इन्सान
पर क्यों छिपा रहा अब तक
मेरे भीतर एक शैतान

READ  सॉनेट – 2 | नामवर सिंह

नहीं कर सका
विसर्जित अहं
नहीं चूर कर सका
अपना अभिमान
मैं ही हूँ गुनहगार
भूल गया
मैं जो तुम्हारा सब उपकार
खत्म नहीं हुई अंततः वासना
पर नहीं चाहा
किसी को फाँसना
नही हो सका
मेरा कोई आशना

मैं ही हूँ गुनहगार
तो मेरे भीतर किस बात का हाहाकार

READ  शब्द लड़ते हैं | अश्वघोष

हुआ कई बार द्वंद्व में पराजित
कई बार हुआ
अपने समय में विभाजित
पर नहीं था
कोई मैल मन में कदाचित

मैं ही हूँ गुनहगार
कोई एक सजा
मुझे भी दिला दो
मेरी तसवीर
मुझे ही दिखा दो
कितना असली
कितना नकली
तुम अपने हिसाब से बता दो

मैं ही हूँ गुनहगार
क्यों रहा तुम्हें इतने वर्षों से
अनवरत पुकार
जानता हूँ जब
नहीं है
तुम्हारे मन में
मेरे लिए कोई
विचार

READ  अम्मा रहतीं गाँव में | प्रदीप शुक्ल

मैं ही हूँ गुनहगार
तब क्यों करता रहा
आखिर तुम्हें प्यार?

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *