महामृगनयनी | अंकिता आनंद
महामृगनयनी | अंकिता आनंद

महामृगनयनी | अंकिता आनंद

महामृगनयनी | अंकिता आनंद

फ्लाईओवर, सेमल, बादल 
उठी नज़रों की भेंट तो इन्हीं से होती है।

पर जब नज़र पर पहरा बिठानेवाले इन निगाहों से रूबरू होते हैं, 
तो ये खुरदुरापन, लहक, नित-नवीन-आकारता उन्हें पसोपेश में डाल देते हैं। 
वे ढूँढ़ते रहते हैं गुलाबजल में डूबे उन संकुचित होते रूई के फ़ाहों को 
जो डालने वाले की आँखों में जलन 
और देखने वाले की आँखों को शीतलता प्रदान करते हैं।

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अभी वक्त लगेगा उन प्रहरियों को समझने में 
कि उन नजरों का दायरा बहुत बढ़ चुका है, वे चेहरे पर अपना क्षेत्रफल बढ़ाते जा रहे हैं 
और इस बीच वो दायरा विस्तृत होता रहेगा, 
नज़रबंदी की सूक्ष्म सीमाएँ उसमें अदृश्य बन जाएँगी।

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