मधुमय प्याली
मधुमय प्याली

रीती होती जाती थी 
जीवन की मधुमय प्याली। 
फीकी पड़ती जाती थी 
मेरे यौवन की लाली।।

हँस-हँस कर यहाँ निराशा 
थी अपने खेल दिखाती। 
धुँधली रेखा आशा की 
पैरों से मसल मिटाती।।

युग-युग-सी बीत रही थीं 
मेरे जीवन की घड़ियाँ। 
सुलझाए नहीं सुलझती 
उलझे भावों की लड़ियाँ।

जाने इस समय कहाँ से 
ये चुपके-चुपके आए। 
सब रोम-रोम में मेरे 
ये बन कर प्राण समाए।

READ  एक साजिश हो रही है | अंजना वर्मा

मैं उन्हें भूलने जाती 
ये पलकों में छिपे रहते। 
मैं दूर भागती उनसे 
ये छाया बन कर रहते।

विधु के प्रकाश में जैसे 
तारावलियाँ घुल जातीं। 
बालारुण की आभा से 
अगणित कलियाँ खुल जातीं।।

आओ हम उसी तरह से 
सब भेद भूल कर अपना। 
मिल जाएँ मधु बरसाएँ 
जीवन दो दिन का सपना।।

READ  खड़ी बोली | अविनाश मिश्र

फिर छलक उठी है मेरे 
जीवन की मधुमय प्याली। 
आलोक प्राप्त कर उनका 
चमकी यौवन की लाली।।

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *