लिख रहा है सूर्य
लिख रहा है सूर्य

अंधतम के वक्ष पर जो
शामियाने-सी तनी है
वह सुबह की रोशनी है।

गर्त में डूबी समय की
यातना सदियों पुरानी
लिख रहा है सूर्य धरती पर
निराली ही कहानी
हवाओं में दूर तक फैली
सृजन की सनसनी है।

दूर घटता जा रहा है
व्योम में फैला कुहासा
हो रही उद्दाम-सा
आलोक की व्याकुल पिपासा
ज्योति की किन्नर कथाओं से
लदी हर अलगनी है।

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धूप की सुकुमार लिपि में
रचीं किरणों ने ऋतुएँ
कँपकँपा कर रह गई
सोई वनस्पति की शिराएँ
ओस कण की नासिका में
जड़ी हरि की कली है।

फूल पत्ते डालियाँ
उगते हुए छोटे नवांकुर
चौंककर सुनते सभी के
कान फिर भी हुए आतुर
बज रही कैसे कहाँ से
इस धरा की करधनी है।

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