लौटा हूँ आज घर | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
लौटा हूँ आज घर | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

लौटा हूँ आज घर
लिए हुए : एक गठरी आकाश
कुछ अधूरे वाक्य
बाजार की चकाचौंध से उपजी हताशा
दुखते हुए कंधे
और दो आँखें : एक से निहारते हुए होना
छिपाते हुए उदासी दूसरी से।

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