लौटा हूँ आज घरलिए हुए : एक गठरी आकाशकुछ अधूरे वाक्यबाजार की चकाचौंध से उपजी हताशादुखते हुए कंधेऔर दो आँखें : एक से निहारते हुए होनाछिपाते हुए उदासी दूसरी से। READ कोई मुश्किल नहीं | रमेश पोखरियाल