कुंभकांड में पुलिस | त्रिलोचन

पुलिस कहाँ थी, नेताओं के पीछे-पीछे
व्यस्त भाव से चलती थी, यह शान बढ़ाने
की कुछ नई कला थी। अगर काल ने बीछे
इसी बीच कुछ सौ सिर फिर लग गया मढ़ाने
लोगों की नजरों से तो फिर फूल चढ़ाने
में पुलिस के दस्ते भी क्यों पीछे रहते,
गजब न हो जाता, अधिकारी लोग पढ़ाने
लगते नए पाठ। सारी कठिनाई सहते
कैसे बेचारे, किस से अपना दुख कहते।
जनता का क्या, यह तो मर-मर कर जीती है
अधिकारी की ठोकर से पक्के घर ढहते
हैं, जनता रहती है, कौन अमृत पीती है।

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दुर्घटना रोके पुलिस क्या-क्या कर डाले।