कृतज्ञ और नतमस्तक | पंकज चतुर्वेदी

सत्ता का यह स्वभाव नहीं है 
कि वह योग्यता को ही 
पुरस्कृत करे 
बल्कि यह है 
कि जिन्हें वह पुरस्कृत करती है 
उन्हें योग्य कहती है

अब जो पुरस्कृत होना चाहें 
वे चाहे ख़ुद को 
और पूर्व पुरस्कृतों को 
उसके योग्य न मानें 
मगर यह मानें 
कि योग्यता का निश्चय 
सत्ता ही कर सकती है

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अंत में योग्य 
सिर्फ़ सत्ता रह जाती है 
और जो उससे पुरस्कृत हैं 
वे अपनी-अपनी योग्यता पर 
संदेह करते हुए 
सत्ता के प्रति 
कृतज्ञ और नतमस्तक होते हैं 
कि उसने उन्हें योग्य माना