कोणार्क के पास | निशांत
कोणार्क के पास | निशांत
ठीक इसी तरह टूट-फूट कर खड़ा रहता हूँ
दूर नहीं, पास लहरा रही होती हैं
समस्याएँ
जीवन रेत की तरह हो रहा होता है
आता हूँ तुम्हारे पास
अभी उसी दिन आया था
कोर्ट में लड़कर
प्रेम में पड़कर
हर परेशानी में
इसी तरह खड़ा होना चाहता हूँ
टूट-फूट कर भी सीधा
कई शताब्दियों तक
इसी तरह।