Contents
- 1 कोहरा | प्रतिभा कटियारी
- 2 Pratibha Katiyar Stories / Poems
- 2.1 हरा | प्रतिभा कटियारी
- 2.2 हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी
- 2.3 सौंदर्य | प्रतिभा कटियारी
- 2.4 सिर्फ तुम्हारा खयाल | प्रतिभा कटियारी
- 2.5 सुनो, मैं तुम तक पहुँचना चाहती हूँ… | प्रतिभा कटियारी
- 2.6 शहर लंदन | प्रतिभा कटियारी
- 2.7 शब्द भर ‘ठीक’ | प्रतिभा कटियारी
- 2.8 वही बात | प्रतिभा कटियारी
- 2.9 रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है | प्रतिभा कटियारी
कोहरा | प्रतिभा कटियारी
कोहरा | प्रतिभा कटियारी
याद है तुमको
कैसे हम दोनों मिलकर
सारा कोहरा जी लेते थे
कॉफी के कप में
सारे लम्हे घोल-घोल के पी लेते थे
याद है तुमको
कोहरे की खुशबू कितना ललचाती थी
देर रात भीगी सड़कों पर
मैं कोहरे की सुरंग में
भागी जाती थी
याद है तुमको
कोहरे की चादर कितना कुछ ढक लेती थी
दिल के कितने जख्मों पर फाहे रखती थी
दिन के टूटे बिखरे लम्हों को
अँजुरी में भर लेती थी
याद है तुमको
एक टूटे लम्हे को तुमने थाम लिया था
भीगी सी पलकों को रिश्ते का अंजाम दिया था
वो रिश्ता अब भी कोहरे की चादर में महफूज रखा है
कोहरे की खुशबू में अब उसकी भी खुशबू है…