अपने भीतर का सन्नाटा
होता अपना मुखबिर
कथ्य वही जो करे मुश्किलें
पैदा अपनी खातिर।

शीशे जैसा शिल्प
ठेस लगते ही बिखरे जैसे
गहन अकेलेपन में
आते हैं विचार भी कैसे
उजियारे को धर दबोचता
अंधियारा है शातिर।

टूटी हुई नींद
रख लेती है पलकों पर पत्थर
लोहे वाले दरवाजे भी
हो जाते हैं कातर
अपना ही विश्वास
हुआ जाता है अपना काफिर।

See also  मछली | बद्रीनारायण

फूल उदासी के,
खुद चुन लेती है कठिन हताशा
चौड़े पथ पर साथ निभाती
पगडंडी की भाषा
दिए जलाता, दिए बुझाता
मन भी कैसा मंदिर ?