काँटा | नरेश अग्रवाल

काँटा | नरेश अग्रवाल

एक बार नहीं अनेक बार 
वह घुसा है चोर की तरह 
तालाब के शांत पानी में 
और देखते-देखते 
चुराकर लाया है एक मछली 
बहुत सारी मछलियों के झुंड से 
फिर भी अनजान रहीं मछलियाँ 
चुप रहीं मछलियाँ 
थामा उसका हाथ हमेशा 
कोई अपना प्रिय सम

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