कमाल है कहा कँवल भारती ने | दिनेश कुशवाह

कमाल है कहा कँवल भारती ने | दिनेश कुशवाह

उनसे स्वीकृति की भीख क्यों माँगें 
उन्होंने पाँच सौ सालों तक 
कबीर को कवि नहीं माना 
आपको कवि होना था 
तो जन्मना था उनके कुल में।

हम सबसे आदरपूर्वक 
पढ़ते हैं उनकी पोथियाँ 
पर सबसे अधिक घृणा 
वे हमारे खिलाफ़ ही बाँचते हैं।

हम सबसे अधिक झुककर 
करते हैं उन्हें सलाम 
पर उनके मन में सबसे अधिक 
विद्वेष है हमारे प्रति।

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युगों से हम उन्हें 
देवता की तरह पूजते हैं 
पर वे आज तक हमें 
आदमी नहीं समझते।

हमारे खिलाफ़ जब उन्हें 
कुछ भी नहीं मिलता तो वे 
हमारी जाति पर अँगुली उठाते हैं 
और फ़ौरन 
अपनी जाति पर उतर आते हैं।

भाईचारे से शत्रुता है उनकी 
उन्हें सिर्फ अनुचर चाहिए 
उन्हें न बड़ा भाई पसंद है 
न छोटा भाई।

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अपनी बात दृढ़तापूर्वक रखने वालों को 
वे राक्षस घोषित कर देते हैं 
इस मामले में वे 
मौसेरे भाइयों को भी नहीं बख्शते।

उनके लिए दुश्मन पक्ष का 
गद्दार भी कुलभूषण है 
शरणागत चराचर द्रोही को 
घोषित करते हैं परम साधु।

जिसका सपरिवार वध करते हैं 
उस पर एहसान लादते हैं 
कि हमने तुम्हें अपना रूप 
और धाम प्रदान किया 
तार दिया तुम्हें सपरिवार।

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उन्होंने दान की महिमा से भर दिए पुराण।

गाय के नाम पर दे दे बाबा 
गंगा के नाम पर दे दे बाबा 
आग के नाम पर दे दे बाबा 
नाग के नाम पर दे दे बाबा।

भिखारियों मुझे क्षमा करना 
वे तुमसे बड़े भिक्षुक हैं 
तुम्हें जूता साफ करने के लिए भी 
नहीं बिठाएँगे अपने साथ।