कालांतर | नरेंद्र जैन

कालांतर | नरेंद्र जैन

(वेणु गोपाल के वास्ते)

कालांतर में वेणु गोपाल विदिशा में 
सपरिवार रहे आए उस एक कमरे में 
जो वीर हकीकतराय मार्ग से आगे जाते हुए 
बरईपुरा चौराहे पर खत्म होता था 
वह एक तिरस्कृत घर था 
लगभग उजाड़ 
किसी भी क्षण ढह जाने के लिए प्रस्तुत एक ठौर

सीढ़ियाँ पत्थर की थीं 
लेकिन रस्सी की तरह हिलती थीं 
ईंटों पर नहीं था पलस्तर 
और गिरती रहती थी धूल हर कहीं

कालांतर में कुछ मित्र आए वहाँ 
और पीतल की बड़ी परात में परोसी गई खिचड़ी 
उम्र के एक लंबे अंतराल के बाद 
अब तक याद है वह स्वाद 
भूख आदिम ठहरी 
लेकिन हुआ नहीं मयस्सर वह स्वाद कहीं

कालांतर में 
वेणुगोपाल हुए बेदखल विदिशा से 
और भूख से हमारी अंतरंगता ही 
जाती रही।

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