कैसे लिखूँ तुम्हारी सुंदरता | रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
कैसे लिखूँ तुम्हारी सुंदरता | रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
वक्त ने अपने वक्त का हिसाब लिखा
और जब सुकून का समय बचा
तुम इस दुनिया में आकर
सुघड़ सुंदरता की भोर जैसी बन गईं
तुम्हारे ओंठों पर कविताओं का लावण्य बिखरा है
तुम्हारी चमकती आँखों में झुक कर
मैं उन पंक्तियों को पढ़ रहा हूँ
तुम्हारे गालों पर लिखी हैं कथाएँ
विशाल माथा सुनहरी किरणों में दमक रहा है
आँखों की झीलों के विस्तृत किनारों की तरह
मेरे ओंठ तुम्हारे माथे को चूमते हैं
तुम्हारे काले बालों में चमक रहा है सफेद बाल
जैसे चाँद की कोई किरण आकर छिप गई
दुनिया के दुख के समुंदरों में
तुम सुख का फूल बन कर खिल रही हो
लेकिन मेरे जीवन में दोनों फूल खिले हैं
मेरे और तुम्हारे जेहन के टैरेस पर
बाँहों में पृथ्वी जैसी कर्मठता भरी है
हथेलियों में विश्वास और भरोसे की गर्मी है
किरणों जैसी सुनहरी उँगलियों में प्यार चमक रहा है
जाँघों पर विश्व का सारा काम स्थापित है
तुम्हारे पैरों में जीवन का नेलपालिश चमक रहा है
जहाँ मैं लाल रंग की तरह लिखा हूँ