कहना | बसंत त्रिपाठी

कहना | बसंत त्रिपाठी

मैं कितने भी अप्रभावी तरीके से
मगर कहता हूँ
चुप नहीं रहता हूँ

तुम कितने भी आरोप लगाओ
मगर सुनते बिल्कुल नहीं हो

और देखो
तुम ही दिखाई पड़ते हो
चमकदार!

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