कभी कभी आदमी मरने से भी थक जाता है | मस्सेर येनलिए
कभी कभी आदमी मरने से भी थक जाता है | मस्सेर येनलिए
कभी कभी आदमी मरने से भी थक जाता है
कभी कभी वह सबके द्वारा बेसहारा छोड़ा देश बन जाता है
जैसे कि एक देश सबके द्वारा छोड़ा हुआ, कभी कभी
एक औरत चली गई
उदास मछली वाले समंदर के भीतर
जब यह तट को कुचलती है, समंदर उफान लेता है
इस तरह कोई भी मेरे घाव नहीं देख पाता
जिसके ऊपर मैंने पपड़ी जमा दी
यदि मैं नहीं होती तो उदासी भी नहीं होती