जन्म-कुंडली | कुँवर नारायण

जन्म-कुंडली | कुँवर नारायण

फूलों पर पड़े-पड़े अकसर मैंने
ओस के बारे में सोचा है –
किरणों की नोकों से ठहराकर
ज्योति-बिंदु फूलों पर
किस ज्योतिर्विद ने
इस जगमग खगोल की
जटिल जन्म-कुंडली बनायी है ?
फिर क्यों निःश्लेष किया
अलंकरण पर भर में ?
एक से शून्य तक
किसकी यह ज्यामितिक सनकी जमुहाई है ?

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और फिर उनको भी सोचा है –
वृक्षों के तले पड़े
फटे-चिटे पत्ते…
उनकी अंकगणित में
कैसी यह उधेडबुन ?
हवा कुछ गिनती है :
गिरे हुए पत्तों को कहीं से उठाती
और कहीं पर रखती है।
कभी कुछ पत्तों को डालों से तोड़कर
यों ही फेंक देती है मरोड़कर… ।

कभी-कभी फैलाकर नया पृष्ठ – अंतरिक्ष –
गोदती चली जाती… वृक्ष… वृक्ष… वृक्ष…

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