जैसे छूलो आसमान | राजकुमार कुंभज

जैसे छूलो आसमान | राजकुमार कुंभज

जैसे छूलो आसमान
कुछ इतना ही आसपास थी मृत्यु
कुछ इतना ही आसपास नहीं था जीवन
कुछ इतना ही आसपास थी पुकारती पुकार
और मैं पुकार रहा था जीवन की कविता
या कि कविता का जीवन
अंतिम शब्द नहीं है कविता में मृत्यु
अंतिम शब्द है मृत्यु में कविता
सुनिश्चित है कि मरूँगा मैं
सुनिश्चित है कि मरेगा मैं भी
लेकिन क्या वह उड़ान भी
जो मैं मरता हूँ मृत्यु-विरुद्ध
और जीवन के पक्ष में ?
शायद नहीं
संशय नहीं
जैसे छूलो आसमान
कुछ इतना ही आसपास थी मृत्यु
जब मैंने की थी कोशिश प्रेम
और आत्महत्या इत्यादि से मिलती-जुलती
जैसे छूलो आसमान।

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