जे.एन.यू. की लड़की | प्रमोद कुमार तिवारी
जे.एन.यू. की लड़की | प्रमोद कुमार तिवारी

जे.एन.यू. की लड़की | प्रमोद कुमार तिवारी

जे.एन.यू. की लड़की | प्रमोद कुमार तिवारी

देखा मैंने उसे
जे.एन.यू. की सबसे ऊँची चटृान पर
डैनों की तरह हाथ फैलाए
उड़ने को आतुर

देख रही थी वह
अपने पैरों के नीचे
हाथ बाँधे खड़ी
सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी को
जहाँ रही है चीरहरण की लंबी परंपरा

अलकों के पीछे चमकता चेहरा…
जैसे काले बादलों को चीर के
निकल रहल हो
चाँद नहीं! सूरज
गजब की सुंदर लगी वो
चेहरे पर थी
उल्लास की चिकनाई, विश्वास की चमक
पैरों में बेफिक्री की चपलता

READ  मेरे साथ चलते हुए

दिखी वो रात के एक बजे
सुनसान पगडंडियों पर कुलांचें भरती
याद आ गईं ‘कलावती बुआ’
घर से निकलने से पहले
छः साल के चुन्नू की मिन्नतें करतीं
साथ चलने को।

पहली बार जाना
हँसती हैं लड़कियाँ भी
राह चलते छेड़ देती हैं
ये भी कोई तराना।

पर्वतारोहण अभियान से पहले
उठाए थी बड़ा सा बैग कंधे पर
चेहरे की चमक कह रही थी
ये तो कुछ भी नहीं
सदियों से चले आ रहे बोझ के आगे
हाँफता समय चकित नजरों से देख रहा था
उसकी गति को।

READ  अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं | फ़िराक़ गोरखपुरी

तन कर खड़ी थी मंच पर
लगा दादी ने ले लिया बदला
जिसकी कमर टेढ़ी हो गई थी
रूढ़ियों के भार से
प्राणों में समेट लिया
उसकी पवित्र खिलखिलाहट को
देर तक महसूसा
माँ का प्रतिकार
जिसकी चंचलता
चढ़ा दी गई थी
शालीनता की सूली पर

बहुत-बहुत बधाई ऐ लड़की!
देखना! बचाना अपनी आग को
जमाने की पुरानी ठंडी हवाओं से
उम्र के जटिल जालों से
दूर रखना अपने सपनों को
हो सके तो बिखेर देना
अपने सपनों को हवाओं में
दुनिया के कोने-कोने में फैल जाएँ
तुम्हारी स्वतंत्रता के कीटाणु
अशेष शुभकामनाएँ!

READ  ग़म की अंधेरी रात में | जाँ निसार अख़्तर

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *