इस बार | नरेश अग्रवाल
इस बार | नरेश अग्रवाल

इस बार | नरेश अग्रवाल

इस बार | नरेश अग्रवाल

इस बार अपने स्वभाव के विपरीत 
बहुत जल्दीबाजी की तुमने 
हाथ छुड़ाया और चले गए 
थोड़ा सा भी समय नहीं दिया 
जी भर के देखने का 
और बातें करने का, 
कितनी चीजें थीं हमारे पास 
दिखाना चाहते थे तुम्हें 
एक शुभ दिन 
सब वैसी की वैसी रह गई 
एक ऊँचाई की ओर बढ़ रहे थे हम, 
जहाँ से पुकारना चाहते थे तुम्हें 
अपना हाथ हिलाते हुए, 
अब उसे सुनने वाला कोई नहीं है 
इसलिए हार गए हैं हम 
हमारे सारे गर्व चूर हो गए हैं 
और अब हम धरती पर हैं। 
कहा था एक दिन तुमने 
सभी को इसी तरह जाना होता है 
बिलकुल खाली हाथ 
लेकिन कितना सारा प्रेम 
छोड़कर गए हो तुम 
और रेखाएँ तुम्हारे हाथ की 
अब भी भाग्य बनकर 
जी रही हैं हमारे साथ 
और सारा कुछ देख लेने के बाद 
तुम अब कहाँ हो 
जान लेने की इच्छा बची है मन में केवल 
और तुम्हारा ठीक से रहना ही 
बहुत सारा संतोष देता है हमें।

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