इंतजार | अभिज्ञात

इंतजार | अभिज्ञात

उन्नीस साल बाद लौटा था गाँव
और इंतजार कर रहा था कुएँ पर बैठे-बैठे लौटने वालों का
बच्चों का
जो गए थे स्कूल
बाबूजी का
जो गए थे धान के खेत में
फसल कट रही थी वहाँ
बाबा का
जो गए थे लालगंज अपनी पेंशन बैंक से उठाने

लोगों को इंतजार था डाकिए का
चाची को फोन कॉल का
बेटा गया है नोएडा रिटेल मार्केटिंग की पढ़ाई करने
माँ को इंतजार था काम वाली बाई का जो अब तक नहीं आई थी
और बर्तन काफी कम माँजे गए थे उसकी आस में

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आँगन को इंतजार था
धूप के उतरने का
कहीं कोने में लगी लौकी के पौधे को
पानी का
जो कई दिन से प्यासा था

मैं जब आया तो मुझे लगा यहाँ बहुत कुछ था इंतजार में
और मैं उसकी एक कड़ी भर था
पूरे उन्नीस साल मेरे गाँव में एक मैं नहीं था इंतजार करने योग्य
और कई थे जो गए थे गाँव से अरसा पहले और नहीं लौटे
और लौटे तो वह नहीं थे जिसका हो रहा था इंतजार
वे बदले-बदले थे

मुझे लगा इंतजार एक सामूहिक लय है गाँव में
और मैं पहुँचते ही चुपके से बन गया उसका एक हिस्सा
मैं कुएँ के पास नीम की छाँह में बैठे-बैठे करने लगा इंतजार

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क्योंकि यह एक ऐसा काम था जिसे सब कर रहे थे
मैंने नजर दौड़ाई
नाद अब भी वहीं था, जहाँ उन्नीस साल पहले बँधा करते थे तीन जोड़ी बैल
जो फिलहाल नहीं थे अपनी जगह
वे लौटेंगे घंटे दो घंटे बाद खेतों से थकहार कर मैंने अपने को समझाया
जैसे मैं लौटूँगा बीस साल बाद
शहर से
जैसे लौटे चालीस साल बाद मेरे पिता

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लेकिन शाम ढल गई
गाँव में बहुत कुछ लौटा
लेकिन नहीं लौटे बैल
मेरी आँखें
रह-रह कर उन्हें खोजती रहीं
और फिर अगले तीन दिन भी वे नहीं लौटे जब तक मैं रहा गाँव में

गाँव में किसी भी घर से नहीं सुनाई दी किसी भी बैल के गले में बँधी घंटियों की आवाजें
उनकी जगह ले ली थी
ट्रैक्टर ने

मैं शहर लौट गया यह सोचते हुए
खेतों को कितना सालता होगा
बैलों का अभाव
न जाने कितने साल तक बैलों का इंतजार करेंगे खेत।