हवाओं के बीच है वह कौन | जगदीश श्रीवास्तव
हवाओं के बीच है वह कौन | जगदीश श्रीवास्तव

हवाओं के बीच है वह कौन | जगदीश श्रीवास्तव

हवाओं के बीच है वह कौन | जगदीश श्रीवास्तव

भीड़ का अपना गणित है
हाशिए पर जिंदगी ठहरी हुई।

ढूँढ़ने निकले जिसे हम
खो गया वह भीड़ में ऐसे
डाल सूखी हो गई
उड़ गए पंछी अचानक
नीड़ से जैसे

हथेली पर स्वप्न टूटे रह गए
याद की खाईं अधिक गहरी हुई।

READ  सलमा चाची | दिविक रमेश

रेत पर जैसे समुंदर फैल जाता है
लहर बनकर मछलियों-सा।
भटकता है जल
कौन कब चुपके से
गुम हो जाएगा
देखता गुमसुम खड़ा है सिर्फ कोलाहल

हवाओं के कान बहरे हो गए
यह सही भी, आज बहरी हो गई।

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *