हाथों में मोबाइल | मुकुट सक्सेना
हाथों में मोबाइल | मुकुट सक्सेना
हम कोरस में लीन प्रगति के
गीत गा रहे हैं
उपचारित बीजों का कर्जा
अभी नहीं उतरा
खड़ी फसल का कच्चा दाना
कीटों ने कुतरा
पक्षी ढोरों से रक्षा हित
खड़ा किया जिनको
वहीं बिजूके पकी फसल का
खेत खा रहे हैं
हाथों में मोबाइल पर
बनियानें फटी हुईं
सूट पहन कर मुद्रित हो रहीं
नाकें कटी हुई
नैतिक और अनैतिकता का
संशय क्या होगा
वैभव की गंगा नहा लेंगे
वहीं जा रहे हैं
एक ओर अपनी माटी ने
ली है अँगड़ाई
और दूसरी ग्लोबल विजनिस
की है चतुराई
कटे पंख की सोन चिरैया
फिर रो क्या चहकी
रंग बिरंगे चिड़ीमार
ले जाल आ रहे हैं