हम ठहरे गाँव के | देवेंद्र कुमार बंगाली

हम ठहरे गाँव के | देवेंद्र कुमार बंगाली

हम ठहरे गाँव के
बोझ हुए रिश्‍ते सब
कंधों के, पाँव के।

भेद-भाव सन्‍नाटा
ये साही का काँटा
सीने के घाव हुए
सिलसिले अभाव के!

सुनती हो तुम रूबी
एक नाव फिर डूबी
ढूँढ़ लिए नदियों ने
रास्‍ते बचाव के।

See also  सरयू | घनश्याम कुमार देवांश

सीना, गोड़ी, टाँगें
माँगें तो क्‍या माँगें
बकरी के मोल बिके
बच्‍चे उमराव के।