चोंच में दबाए एक तिनका
गौरय्या
मेरी खिड़की के खुले हुए
पल्ले पर
बैठ गई
और देखने लगी
मुझे और
कमरे को।
मैंने उल्लास से कहा
तू आ
घोंसला बना
जहाँ पसंद हो
शरद के सुहावने दिनों से
हम साथी हों।

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