हम औरतें
हम औरतें

रक्त से भरा तसला है
रिसता हुआ घर के कोने-अंतरों में

हम हैं सूजे हुए पपोटे
प्यार किए जाने की अभिलाषा
सब्जी काटते हुए भी
पार्क में अपने बच्चों पर निगाह रखती हुई
प्रेतात्माएँ

हम नींद में भी दरवाजे पर लगा हुआ कान हैं
दरवाजा खोलते ही
अपने उड़े-उड़े बालों और फीकी शक्ल पर
पैदा होने वाला बेधक अपमान हैं

READ  अधलेटा सा पड़ा पीपल | मनोज तिवारी

हम हैं इच्छा-मृग

वंचित स्वप्नों की चरागाह में तो
चौकड़ियाँ
मार लेने दो हमें कमबख्तो !

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *