घर की याद आई | माहेश्वर तिवारी
घर की याद आई | माहेश्वर तिवारी
धूप में
जब भी जले हैं पाँव
घर की याद आई
नीम की
छोटी छरहरी
छाँह में
डूबा हुआ मन
द्वार का
आधा झुका
बरगद : पिता
माँ : बँधा आँगन
सफर में
जब भी दुखे हैं घाव
घर की याद आई
यह शहर का
शोरगुल
वह गाँव का
सूता-परेता
आग में झुलसी हुई
तुलसी
धुएँ में
जया-जेता
रेत में
जब भी थमी है नाव
घर की याद आई