घर | ब्रजेन्द्र त्रिपाठी

घर | ब्रजेन्द्र त्रिपाठी

बहुत बार सोचा है
घर है क्या ?
क्या यह घास, फूस, बाँस
या कि ईंट, सीमेंट, कांक्रीट, संगमरकर
से बनी मात्र एक निर्मिति है
जड़, निष्प्राण
अथवा एक जीवंत उपस्थिति है
जरा सेाचकर बताएँ
कि घर पदार्थवाची है या भाववाची ?

जब हम कहते हैं या महसूस करते हैं
कि घर की याद आ रही है
तो क्या यह ‘घर’ नाम की उस
जड़ संरचना की स्मृति होती है
या कि उसके साथ उसमें रहने वाले लोग
उनका पूरा परिवेश, बीती हुई छोटी-बड़ी
तमाम घटनाएँ भी शामिल होती हैं ?

चौथी कक्षा में पढ़ने वाले मेरे बेटे ने
कल मुझसे सवाल किया कि
घर किसे कहते हैं ?
तो मैं उलझन में पड़ गया,
उसे कैसे समझाऊँ कि
घर क्या होता है ?
वैसे घर का अर्थ तभी खुलता है
जब हम घर से दूर होते हैं
कैसा विरोधाभास है कि जब हम घर से दूर होते हैं, तभी
घर के निकट होते हैं।

अब इस समय नाम याद नहीं आ रहा
कि किसने कहा था कि
घर लौटने के लिए होता है
कितनी बड़ी होती होगी उनकी पीड़ा
जिनके कोई घर नहीं होता अथवा
जिन्हें घर से बेदखल कर दिया जाता है
वे तो लौट भी नहीं सकते।

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2.

कभी-कभी घर होता है
एक सपना
जिसे हम तामीर करना चाहते हैं
पर कर नहीं पाते
हवा के एक तेज झोंके से जैसे बिखर जाएँ
चिड़िया द्वारा चुन-चुन कर जोड़े गए तिनके
वैसे ही बिखर जाता है
घर का सपना
और घर सपना ही बना रहता है।

क्या आपको कभी ऐसा नहीं लगा
कि घर एक सेतु भी है
जो हमारे वर्तमान को अतीत से जोड़ता है
आधुनिकता को परंपरा से ?
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि
घर अपने आप में एक परंपरा है।

मित्रो !
घर का वास्तविक अर्थ
आपको शब्दकोशों में नहीं मिलेगा
इसका अर्थ तो अनुभव की आँच में ही खुलेगा
जितने अनुभव-परिपक्व होते जाएँगे आप
घर के नए-नए अर्थों से परिचित होते जाएँगे।

अब ये भी तो मुझे नहीं मालूम
कि मेरी बातें
आपके दिल में घर कर भी रही हैं या नहीं !

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