घंटी | कुँवर नारायण

घंटी | कुँवर नारायण

फोन की घंटी बजी
मैंने कहा – मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया

दरवाजे की घंटी बजी
मैंने कहा – मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया

अलार्म की घंटी बजी
मैंने कहा – मैं नहीं हूँ
और करवट बदलकर सो गया

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एक दिन
मौत की घंटी बजी…
हड़बड़ा कर उठ बैठा –
मैं हूँ – मैं हूँ – मैं हूँ
मौत ने कहा –
करवट बदलकर सो जाओ।