एक दिन हमारे पास होंगे खुले हरे मैदान
चारों तरफ नहीं होंगी कुएँ जैसी दीवारें
नहीं खड़े होंगे संतरी
घुसने के लिए नहीं होगा कोई प्रभुताचिह्न
एक दिन नहीं दिखाना पड़ेगा
अपने खिलाड़ी होने का प्रमाण-पत्र
हर आदमी रखता होगा खेलने की इच्छा

एक दिन कोई नहीं जाएगा
तानाशाह के स्टेडियम की तरफ।

See also  मन | नीरज पांडेय