एक और बाघ | फ़रीद ख़ाँ

एक और बाघ | फ़रीद ख़ाँ

गीली मिट्टी पर पंजों के निशान देख कर लोग डर गए।
जैसे डरा था कभी अमेरिका ‘चे’ के निशान से।
लोग समझ गए,
यहाँ से बाघ गुजरा है।

शिकारियों ने जंगल को चारों ओर से घेर लिया।
शिकारी कुत्तों के साथ डिब्बे पीटते लोग घेर रहे थे उसे।
भाग रहा था बाघ हरियाली का स्वप्न लिए।
उसकी साँसे फूल रही थीं,
और भागते भागते
छलक आई उसकी आँखों में उसकी गर्भवती बीवी।

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शिकारी और और पास आते गए
और वह शुभकामनाएँ भेज रहा था अपने आने वाले बच्चे को,
कि ‘उसका जन्म एक हरी भरी दुनिया में हो’।

सामने शिकारी बंदूक लिए खड़ा था
और बाघ अचानक उसे देख कर रुका।|
एकबारगी सकते में धरती भी रुक गई,
सूरज भी एकटक यह देख रहा था कि क्या होने वाला है।

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वह पलटा और वह चारों तरफ से घिर चुका था।
उसने शिकारी से पलट कर कहा,
‘मैं तुम्हारे बच्चों के लिए बहुत जरूरी हूँ, मुझे मत मारो’।
चारों ओर से उस पर गोलियाँ बरस पड़ीं।

उसका डर फिर भी बना हुआ था।
शिकारी सहम सहम कर उसके करीब आ रहे थे।

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उसके पंजे काट लिए गए, जिससे बनते थे उसके निशान।
यह उपर का आदेश था,
कि जो उसे अमर समझते हैं उन्हें सनद रहे कि वह मारा गया।
आने वाली पीढ़ियाँ भी यह जानें।
उसके पंजों को रखा गया है संग्रहालय में।