देशभक्ति | आस्तिक वाजपेयी

देशभक्ति | आस्तिक वाजपेयी

अब क्या रह गया है,
हम सब तो हार गए।

अपनी कोशिश की नाकामयाबी का
सामना करने का जज्बा भी

चलो, अब समय आ गया
पिछली शताब्दी के कोने में
हम गांधी को बैठा कर आ गए,
यह बोलकर कि
देश आजाद हो गया।

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क्योंकि हमें पता था कि आजादी
कुर्बानी माँगती है
हमने एक दूसरे को मारा
उन्हीं अस्त्रों को उठाकर जिन्हें
सदियों पहले अशोक ने त्याग दिया था,
हम लड़ते गए और कुछ न कर पाए।

और हम छिप गए उस युद्ध से
जो हममें छिड़ गया था जिसे
जीतकर एक कुत्ते को
छोड़ने की शर्त पर
स्वर्ग जाने से मना कर चुका था
युधिष्ठर।

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अपने बूढ़ों के स्वप्नों को नोचकर
हम परिष्कृत हो गए।
अंग्रेजी बोलते-बोलते हमने
हिंदी में सोचा क्या हम स्वतंत्र हो गए ?

हम कुछ तो हो ही गए होंगे
ढोंगी, क्रोधी, ईर्ष्यालु !

समय में गुँथा एक फंदा
जिसे खोलने की फुर्सत
अब किसी के पास नहीं है

हम यह समझ नहीं पाए
कि इस शोर से नहीं छिपेगा
कि हम अकेले थे,
नहीं छिपेगा कि,
दूसरे भी अकेले थे

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