दस्ताने | आरसी चौहान

दस्ताने | आरसी चौहान

यहाँ बर्फीले रेगिस्तान में
किसी का गिरा है दस्ताना
हो सकता है इस दस्ताने में
कटा हाथ हो किसी का
सरहद पर अपने देश की खातिर
किसी जवान ने दी हो कुर्बानी
या यह भी हो सकता है
यह दस्ताना न हो
हाथ ही फूलकर दीखता हो
दस्ताने-सा
जो भी हो यह लिख रहा है
अपनी धरती माँ को
अंतिम सलाम या
पत्नी को खत
घर जल्दी आने के बारे में
या बहन से
राखी बंधवाने का आश्वासन
या माँ-बाप को
कि
इस बार
करवानी है ठीक माँ की
मोतियाबिंद वाली आँखें
और पिता की पुरानी खाँसी का
इलाज जो भी हो
सरकारी दस्तावेजों में गुम ऐसे
न जाने कितने दस्ताने
बर्फीले रेगिस्तान में पड़े
खोज रहे हैं
आशा की नई धूप।

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