चीजें मेरे हाथ से छूट जाती हैं | ईमान मर्सल

चीजें मेरे हाथ से छूट जाती हैं | ईमान मर्सल

एक दिन मैं उस घर के सामने से गुजरूँगी
जो बरसों तक मेरा था
और यह नापने की कोशिश बिल्कुल नहीं करूँगी कि
वह मेरे दोस्तों के घर से कितना दूर है

वह मोटी विधवा अब मेरी पड़ोसन नहीं है
जिसका प्रेम से कातर रुदन जगा देता था मुझे आधी रात

मैं भ्रम में न पड़ूँ इसलिए खुद ही चीजों का आविष्कार कर लूँगी
अपने कदम गिनूँगी
या अपना निचला होंठ चबाऊँगी उसके हल्के दर्द का स्वाद लेते हुए
या टिशू पेपर के एक पूरे पैकेट को फाड़ते हुए
अपनी उँगलियों को व्यस्त रखूँगी

पीड़ाओं से बचने के लिए
शॉर्टकट का सहारा न लूँगी
मैं मटरगश्तियों से खुद को न रोकूँगी
मैं अपने दाँतों को सिखा दूँगी
कि भीतर जो नफरत कूदती है
उसे कैसे चबा लिया जाए
और माफ कर दिया जाए उन ठंडे हाथों को
जिन्होंने मुझे उसकी तरफ धकेला,

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मैं याद रखूँगी
कि बाथरूम की चमकीली सफेदी को
अपने भीतर के अँधेरे से धुँधला न कर दूँ

बेशक, चीजें मेरे हाथ से छूट जाती हैं
यह दीवार ही कौन-सा मेरे सपनों में प्रवेश पा लेती है
दृश्य के दुख-भरे प्रकाश से मैच करने के लिए
मैंने किसी रंग की कल्पना नहीं की

यह मकान बरसों तक मेरा घर था
यह कोई छात्रावास नहीं था
जिसके दरवाजे के पीछे खूँटी पर मैं अपना लहँगा टाँग दूँ
या कामचलाऊ गोंद से पुरानी तस्वीरें चिपकाती रहूँ

‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’ से
चुन-चुन कर निकाले रूमानी वाक्य
अब इतना गड्ड-मड्ड हो गए होंगे
कि उन्हें साथ रखने पर वे बहुत हास्यास्पद लगेंगे

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