चलो विमल, चलो 
चलो दूर तलक 
इस चाँदनी में नहाई 
अनपहचानी पक्की सड़क पर

चलो, 
दूर तलक चलो

हमदोनों कुछ नहीं बोलेंगे, विमल 
चुपचाप चलेंगे, 
चुपचाप 
हमारे पैरों की चाप भी 
नहीं पैदा करे कोई हलचल 
इस चाँदनी के मौन को 
हम नहीं करेंगे भंग

देखो, सड़कों पर नन्हें-नन्हें 
खरगोशों की तरह 
उछल-कूद कर रही है चाँदनी 
निस्तब्धता को कर रही है 
और भी निस्तब्ध 
चू रही है चाँदनी सड़क के दोनों किनारों के सघन-लंबे वृक्षों की 
फुनगियों से 
टपक रही है श्वेत फूलों की तरह 
बहुल सम्हल के चलना है हमें 
हमसे छू नहीं जाए!

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विमल चलो, 
चलो विमल, दूर तलक चलो 
किस समय लौटेंगे, कह नहीं सकते हम 
हम लौटना भी नहीं चाहते 
जब तलक तना हो आकाश में 
चाँदनी का चँदोवा

तुम कह रहे हो विमल 
सर, इस चाँदनी में कुछ तो है 
जरूर कुछ है, सर 
तभी तो रात-रात भर इसमें 
नहाने की इच्छा होती है हमारी 
इच्छा होती है 
रात-रात भर इसे निहारने की 
हाँ विमल, कुछ तो है जरूर 
क्यों मैं भी रहता हूँ उद्विग्न 
पूरे चाँद की रातों में

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सुना है, विमल, सुना है तुमने 
सागर की लहरें और भी मचल उठती हैं 
चाँदनी में। 
हम भी तो शायद 
सागर के ही अंश हैं मित्र

हमें लगता है विमल, 
(सही कह रहा हूँ – 
क्यों तो ऐसा बार-बार लगता है।) 
कभी पूरे चाँद की रात में ही 
मरूँगा मैं 
छोड़ जाऊँगा सारी पृथ्वी 
इतनी ही खूबसूरत और सुगंध-भरी

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लेकिन 
अभी तो चलना है बहुत दूर मेरे मित्र 
बहुत दूर 
इन अनजानी, अनपहचानी सड़कों पर 
इस पूरी पूरी चाँदनी में 
तुम्हारे जैसे मित्रों के साथ 
चुप- 
चाप