चाहना | आलोक पराडकर
चाहना | आलोक पराडकर

चाहना | आलोक पराडकर

चाहना | आलोक पराडकर

हम जो बहुत कुछ चाहते हैं
सपने देखते हैं
कई बार वे पूरे होने लगते हैं
या तो उनके पूरे होने की रफ्तार कुछ ऐसी होती है
या फिर हम उन सपनों से इतनी दूर आ चुके होते हैं
कि उनके पूरे होने का अहसास नहीं होता
चाहत को यथार्थ में बदलते हुए
हम कुछ नया चाहने लगते हैं

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