बुराई | ईमान मर्सल
बुराई | ईमान मर्सल
मैं सोचती थी कि दुनिया में बहुत सारी बुराइयाँ हैं
जबकि मैं अपने दोस्तों के बीच सबसे ज्यादा उदार हूँ
मैं जब भी किसी फूल को गुलदान में सजा देखती
उसकी पंखुड़ी को अपने अँगूठे और तर्जनी में फँसा मसले बिना रह नहीं पाती
ताकि जान सकूँ कि यह प्लास्टिक का फूल नहीं है
धीरे-धीरे मुझे बुराइयों के अस्तित्व पर ही संदेह होने लगा है
ऐसा लगता है, सारा नुकसान हो चुका होगा जब तक कि हमें यह अहसास होगा
जिन जीवों को हमने खूनमखून कर दिया, वे असली थे।
(यूसुफ राखा द्वारा किए अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित)