बिटिया का कहना | बोधिसत्व

बिटिया का कहना | बोधिसत्व

जब घर से निकला था
खेल रही थी पानी से,
मुझे देख कर मुसकाई
हाथ हिलाया बेध्यानी से।

रात गए जब घर लौटा उसको
सोता पाया।
हो सकता है जगे जान कर
मुझको आया।

दिन में बात हुई थी
बहुत कुछ लाना था
सोते से जगा कर
सब कुछ दिखलाना था।

See also  तुम्हारे साथ चलते हुए | जितेंद्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता

किंतु न लाया कुछ भी
सोचा ला दूँगा,
रोज-रोज की बात है कुछ भी
समझा दूँगा।

अभी जगी है पूछ रही है
आए पापा,
जो जो मैंने मँगवाया था
लाए पापा।

निकला हूँ कंधे पर उसको
बैठा कर
दिलाना ही होगा सब कुछ
दुकान पर ले जाकर।

यह हरजाना है
भरना ही होगा,
बिटिया जो भी कहे
करना ही होगा।

See also  मुक्ति