भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं | हसरत मोहानी
भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं | हसरत मोहानी

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं | हसरत मोहानी

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं | हसरत मोहानी

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं
इलाही तर्के-उल्फ़त पर वो क्योंकर याद आते हैं

न छेड़ ऐ हम नशीं कैफ़ीयते-सहबा के अफ़साने
शराबे-बेख़ुदी के मुझको साग़रयाद आते हैं

READ  मुहावरा | नीलेश रघुवंशी

रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाये नाकामी
वो दश्ते-ख़ुद फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं

नहीं आती तो याद उनकी महीनों भर नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं

हक़ीक़त खुल गई ‘हसरत’ तेरे तर्के-महब्बत की
तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़कर याद आते हैं

READ  पेड़ की छाया | प्रयाग शुक्ला

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *