भगत सिंह की बोई बंदूकें | नीरज पांडेय
भगत सिंह की बोई बंदूकें | नीरज पांडेय

भगत सिंह की बोई बंदूकें | नीरज पांडेय

भगत सिंह की बोई बंदूकें | नीरज पांडेय

भगत सिंह के 
जन्म दिन पर हमने 
उनकी बंदूक बोने वाली 
कहानी सुनाई, तो बच्चों ने पूछा 
क्या सचमुच भगत सिंह ने बोई थीं 
बंदूकें… उगने के बाद क्या करते उनका…?

उनके इस प्रश्न को कुछ हल किए 
कुछ बाँधकर रख लिए 
पूरा दिन बंदूकें आस पास 
घूमती रहीं 
और 
रात सपने में 
वही भगतसिंह की बोई 
तीन चार बंदूकें आईं

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मुर्चे से छोपी 
रेह में सनी 
उदास 
बंदूकें 
जिनकी नालों में मोथे उग आए थे 
जिस पर राष्ट्रीय घास का बोर्ड लगा है 
और लिखा था… छूना मना है 
छुए तो द्रोही करार कर दिए जाओगे 
अगर इन्हें उचारने की सोची 
तो मार दिए जाओगे 
हम डेरा गए

वो चटकदार बंदूकें 
पूछने लगीं 
कि क्या चल रहा है आजकल 
हमारे इंकलाब और जिंदाबाद कैसे हैं 
बड़े हो गए होंगे अब तो…? 
बहुत दिन हुआ 
कुछ हाल खबर नहीं मिली 
सोचा चल के देखा जाय 
कैसा है हमारा भारत

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हम एकदम चोर हो गए 
सन्न मन्न 
बिल्कुल गूँगा 
बोली नहीं निकरी 
सत्य असत्य कुछ भी नहीं बोल पाए 
बंदूकें उदास होकर 
वापस लौट पड़ीं 
कहते हुए 
यूँ उदास नहीं होते 
दुरुस्त करो अपने अपने खेतों को 
आँखा भी फूटेगा 
और बंदूकें उगेंगी 
फिर कलम बाँधना और फैला देना उन्हें

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…मैं फिर आऊँगी 
हाल खबर लेने 
चलती हूँ अब…!

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