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किसका पुण्य बड़ा Kiska Punya Bada? Saatvin Kahani – Betal Pachchisi in Hindi

मिथलावती नाम की एक नगरी थी। उसमें गुणधिप नाम का राजा राज करता था। उसकी सेवा करने के लिए दूर देश से एक राजकुमार आया। वह बराबर कोशिश करता रहा, लेकिन राजा से उनकी भेंट न हुई। जो कुछ वह अपने साथ लाया था, वह सब बराबर हो गया।

एक दिन राजा शिकार खेलने चला। राजकुमार भी साथ हो लिया। चलते-चलते राजा एक वन में पहुँचा। वहाँ उसके नौकर-चाकर बिछुड़ गये। राजा के साथ अकेला वह राजकुमार रह गया। उसने राजा को रोका। राजा ने उसकी ओर देखा तो पूछा, ‘‘तू इतना कमजोर क्यों हो रहा है।’’ उसने कहा, ‘‘इसमें मेरे कर्म का दोष है। मैं जिस राजा के पास रहता हूँ, वह हजारों को पालता है, पर उसकी निगाह मेरी और नहीं जाती। राजन् छ: बातें आदमी को हल्का करती हैं—खोटे नर की प्रीति, बिना कारण हँसी, स्त्री से विवाद, असज्जन स्वामी की सेवा, गधे की सवारी और बिना संस्कृत की भाषा। और हे राजा, ये पाँच चीज़ें आदमी के पैदा होते ही विधाता उसके भाग्य में लिख देता है – आयु, कर्म, धन, विद्या और यश। राजन्, जबतक आदमी का पुण्य उदय रहता है, तबतक उसके बहुत-से दास रहते हैं।

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जब पुण्य घट जाता है तो भाई भी बैरी हो जाते हैं। पर एक बात है, स्वामी की सेवा अकारथ नहीं जाती। कभी-न-कभी फल मिल ही जाता है।’’

यह सुन राजा के मन पर उसका बड़ा असर हुआ। कुछ समय घूमने-घामने के बाद वे नगर में लौट आये। राजा ने उसे अपनी नौकरी में रख लिया। उसे बढ़िया-बढ़िया कपड़े और गहने दिये।

एक दिन राजा के काम से कहीं गया। रास्ते में उसे देवी का मन्दिर मिला। उसने अन्दर जाकर देवी की पूजा की। जब वह बाहर निकला तो देखता क्या है, उसके पीछे एक सुन्दर स्त्री चली आ रही है। राजकुमार उसे देखते ही उसकी ओर आकर्षित हो गया। स्त्री ने कहा, ‘‘पहले तुम कुण्ड में स्नान कर आओ। फिर जो कहोगे, सो करूँगी।’’

इतना सुनकर राजकुमार कपड़े उतारकर जैसे ही कुण्ड में घुसा और गोता लगाया कि अपने नगर में पहुँच गया। उसने जाकर राजा को सारा हाल कह-सुनाया। राजा ने कहा, ‘‘यह अचरज मुझे भी दिखाओ।’’

दोनों घोड़ों पर सवार होकर देवी के मन्दिर पर आये। अन्दर जाकर दर्शन किये और जैसे ही बाहर निकले कि वह स्त्री प्रकट हो गयी। राजा को देखते ही बोली, ‘‘महाराज, मैं आपके रूप पर मुग्ध हूँ। आप जो कहेंगे, वही करुँगी।’’

राजा ने कहा, ‘‘ऐसी बात है तो तू मेरे इस सेवक से विवाह कर ले।’’
स्त्री बोली, ‘‘यह नहीं होने का। मैं तो तुम्हें चाहती हूँ।’’
राजा ने कहा, ‘‘सज्जन लोग जो कहते हैं, उसे निभाते हैं। तुम अपने वचन का पालन करो।’’
इसके बाद राजा ने उसका विवाह अपने सेवक से करा दिया।
इतना कहकर बेताल बोला, ‘‘हे राजन्! यह बताओ कि राजा और सेवक, दोनों में से किसका काम बड़ा हुआ?’’
राजा ने कहा, ‘‘नौकर का।’’
बेताल ने पूछा, ‘‘सो कैसे?’’

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राजा बोला, ‘‘उपकार करना राजा का तो धर्म ही था। इसलिए उसके उपकार करने में कोई खास बात नहीं हुई। लेकिन जिसका धर्म नहीं था, उसने उपकार किया तो उसका काम बढ़कर हुआ?’’

इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा जब उसे पुन: लेकर चला तो उसने आठवीं कहानी सुनायी।

किसका पुण्य बड़ा कहानी यहाँ पे ख़तम हुई।

बेताल पच्चीसी (Betal Pachchisi)

बेताल पच्चीसी पच्चीस कथाओं से युक्त एक ग्रन्थ है। इसके रचयिता बेतालभट्ट बताये जाते हैं जो न्याय के लिये प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। बेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता। Read on Wikipedia

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Further Reading:

  1. बेताल-पच्चीसी पहली कहानी
  2. बेताल-पच्चीसी दूसरी कहानी
  3. बेताल-पच्चीसी तीसरी कहानी
  4. बेताल-पच्चीसी चौथी कहानी
  5. बेताल-पच्चीसी पाँचवीं कहानी
  6. बेताल-पच्चीसी छठी कहानी
  7. बेताल-पच्चीसी सातवीं कहानी
  8. बेताल-पच्चीसी आठवीं कहानी
  9. बेताल-पच्चीसी नवीं कहानी
  10. बेताल-पच्चीसी दसवीं कहानी
  11. बेताल-पच्चीसी ग्यारहवीं कहानी
  12. बेताल-पच्चीसी बारहवीं कहानी
  13. बेताल-पच्चीसी तेरहवीं कहानी
  14. बेताल-पच्चीसी चौदहवीं कहानी
  15. बेताल-पच्चीसी पन्द्रहवीं कहानी
  16. बेताल-पच्चीसी सोलहवीं कहानी
  17. बेताल-पच्चीसी सत्रहवीं कहानी
  18. बेताल-पच्चीसी अठारहवीं कहानी
  19. बेताल-पच्चीसी उन्नीसवीं कहानी
  20. बेताल-पच्चीसी बीसवीं कहानी
  21. बेताल-पच्चीसी इक्कीसवीं कहानी
  22. बेताल-पच्चीसी बाईसवीं कहानी
  23. बेताल-पच्चीसी तेईसवीं कहानी
  24. बेताल-पच्चीसी चौबीसवीं कहानी
  25. बेताल-पच्चीसी पच्चीसवीं कहानी
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बैताल पचीसी – Baital Pachisi