जब सब आरती कर रहे थे
वह पौधों को
पानी देने में मगन था
भीतर ही भीतर
जब सब अपनी मनौतियों में
थे सराबोर
वह दुखी था –
कि अंततः उस बिल्ली को
बचाने में नहीं हुआ कामयाब
बँगले में
संपन्नता थी हर जगह
पर उसे गम था
आदमी के न होने का
![बँगले में | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता](https://www.hindiadda.com/wp-content/uploads/ha/2019/12/a29.png)
सब कुछ हिंदी में
जब सब आरती कर रहे थे
वह पौधों को
पानी देने में मगन था
भीतर ही भीतर
जब सब अपनी मनौतियों में
थे सराबोर
वह दुखी था –
कि अंततः उस बिल्ली को
बचाने में नहीं हुआ कामयाब
बँगले में
संपन्नता थी हर जगह
पर उसे गम था
आदमी के न होने का