बंदगी | लीना मल्होत्रा राव

बंदगी | लीना मल्होत्रा राव

मैं चाहता हूँ तुम खुश रहो 
सदैव खुश पिया की प्रियांगिनी

इसीलिए चुने मैंने तुम्हारे लिए 
तुम्हारी काया के कपड़े 
बेजोड़ श्रृंगार और सुंदर रंग 
चुने कानों के चमकदार बुंदे 
और तुम्हारी निर्मल भाषा 
चुना मैंने तुम्हारे लिए एक सलीका 
और चुना पर्दा

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जिसके नीचे तुम खुश रहो 
और तुम्हारी खुशियाँ कहीं निकल न भागें 
इसलिए मैंने चुनी निर्भीक दीवारें और मजबूत कोठरियाँ

लेकिन तुम्हारे अँधेरों ने भी मुस्कराहट के गर्भ धारण कर लिए 
जो एक नाजायज औलाद की तरह मुझमें खौफ पैदा करते थे

तुम्हारी मुस्कराहट छूत की बीमारी की तरह फैल रही थी 
कोठरी दर कोठरी औरत दर औरत

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मेरे दिमाग में कई कीड़े थे जो कुलबुलाने लगे 
मैं चीखा चिल्लाया, 
गाली दी 
सोचा इस तरह जीना दुश्वार कर दूँगा तुम्हारा 
मेरा क्रोध और भड़ास मैंने तुम्हें पीट कर निकाला

तुम बंद 
दबी ढकी 
गाली खाती पिटी 
फिर भी खुश रही 
और 
मुस्कुराती रही

इस तरह 
जिद्दी सरकश औरत 
अपनी बंदगी का भरपूर बदला चुकाया तुमने

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