बाकी तो सब कुछ चंगा जी | ओम प्रकाश नौटियाल
बाकी तो सब कुछ चंगा जी | ओम प्रकाश नौटियाल
कट रहे वृक्ष औ’ शाखाएँ
अद्भुत विकास की गाथाएँ
हरियाली हरते हठधर्मी
ना लाज हया बस बेशर्मी
धरा को किया अधनंगा जी
बाकी तो सब कुछ चंगा जी !
गाँवों में मिलते गाँव नहीं
तरु की रही कहीं छाँव नहीं
तडाग तल्लैया सूख गए
पक्षी रह प्यासे रूठ गए
हर गाँव हुआ बेढंगा जी
बाकी तो सब कुछ चंगा जी !
नवजात बिलखते घूरे में
वृद्धों की श्वास अधूरे में
गुमराह भटकता युवा वर्ग
अनमोल समय हो रहा व्यर्थ
सपना देखें सतरंगा जी
बाकी तो सबकुछ चंगा जी !
तब हमें भी कुछ सद्बुद्धि थी
तरंगिणियाँ करती शुद्धि थी
नदियाँ थी तब जीवन हाला
जो आज बनी गंदा नाला
बरसों से मैली गंगा जी
बाकी तो सब कुछ चंगा जी !
सत्ता सुख में नेता पागल
जनतंत्र हुआ चोटिल घायल
सेवा करना बदकाम हुआ
जनता का स्वप्न तमाम हुआ
दुश्कर है इनसे पंगा जी
बाकी तो सब कुछ चंगा जी !
जनतंत्र भटकता गली गली
फिर से चुनाव की हवा चली,
कुर्सी को पाने की खातिर
बस जहर घोलते हैं शातिर,
करते शहरों में दंगा जी
बाकी तो सब कुछ चंगा जी !
आतंकी हैं, कहीं नक्सली
अलगाववाद की हवा चली
क्षेत्रीयता भारत पर भारी
नेता कुर्सी पर बलिहारी
सहमा सा उड़े तिरंगा जी
बाकी तो सब कुछ चंगा जी !