और अब | अभिमन्यु अनत

और अब | अभिमन्यु अनत

‘जाय दे’ कहकर तुमने
विभीषण को जाने दिया
‘आय दे’ कहकर तुमने
जयचंद को आने दिया
‘छोड़ दे’ कहकर अब तुम
छुड़ाना चाह रहे
जकड़ी हुई अपनी गरदन को।

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