अंततः | अविनाश मिश्र

अंततः | अविनाश मिश्र

जीवन में कहीं कुछ खो देने के अनेक सिलसिले थे
जो कहीं खो दिया गया
उसकी जगह
कहीं कुछ और भी खोया जा सकता था
मसलन आपाधापियाँ कहीं खोई जा सकती थीं
समुद्रों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों के बरअक्स

लेकिन एक साइकिल बची रह गई कहीं
और स्मृतियाँ कहीं खो गईं

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इसी दरमियान एक आदमी
साइकिल से कहीं जाते-जाते कहीं खो गया

वह समुद्रों के बारे में कम जानता था
नदियों के बारे में और भी कम
और पहाड़ों और जंगलों के बारे में
और और भी कम